NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

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NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists (Hindi Medium)

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 11 Sociology. Here we have given NCERT Solutions for Class 11 Sociology Understanding Society Chapter 4 Introducing Western Sociologists.

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न [NCERT TEXTBOOK QUESTIONS SOLVED]

प्र० 1. बौद्धिक ज्ञानोदय किस प्रकार समाजशास्त्र के विकास के लिए आवश्यक है?
उत्तर-
(i) 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध और 18वी शताब्दी में पश्चिमी यूरोप में संसार के विषय में सोचने-विचारने के मौलिक दृष्टिकोण का जन्म हुआ। यह ज्ञानोदय अथवा प्रबोधन के नाम से जाना जाता है।
(ii) विवेकपूर्ण और आलोचनात्मक ढंग से सोचने की प्रवृत्ति ने मनुष्य को सभी प्रकार के ज्ञान का उत्पादन और उपभोक्ता दोनों में बदल दिया। मानव व्यक्ति को ज्ञान का पात्र’ की उपाधि दी गई।
(iii) जो व्यक्ति विवेकपूर्ण ढंग से सोच-विचार कर सकते थे, केवल उसी व्यक्ति को पूर्ण रूप से मनुष्य माना गया।
(iv) तर्कसंगत को मानव जगत की पारिभाषिक विशिष्टता का स्थान देने के लिए प्रकृति, धर्म-संप्रदाय तथा देवी-देवताओं के वर्चस्व को कम करना अनिवार्य था। इसका कारण यह था कि पहले मानव जगत को जानने-समझने के लिए इन्हीं विचारों का सहारा लेना पड़ता था। ।

प्र० 2. औद्योगिक क्रांति किस प्रकार समाजशास्त्र के जन्म के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर-
(i) उत्पादन घर से बाहर निकल कर फैक्ट्रियों के हवाले चला गया। नवीन स्थापित उद्योगों में काम की तलाश में लोगों ने ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़ दिया और शहरी क्षेत्रों में चले गए।
(ii) अमीर लोग बड़े-बड़े भवनों में रहने लगे और मजदूर वर्ग ने गंदी बस्तियों में रहना प्रारंभ कर दिया।
(iii) आधुनिक प्रशासनिक व्यवस्था के कारण राजतंत्र को लोक संबंधी विषयों और कल्याणकारी कार्यों की जवाबदेही उठाने के लिए बाध्य किया गया।

प्र० 3. उत्पादन के तरीकों के विभिन्न घटक कौन-कौन से हैं?
उत्तर- उत्पादन के तरीकों के निम्नलिखित घटक हैं

  • प्रथम, उत्पादन के साधन हैं जिसका अर्थ है मजदूर वर्ग जो उत्पादन करते हैं।
  • द्वितीय, पूँजीपति वर्ग है जिसका उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण रहता है।
  • उपभोग की वस्तुओं की तरह श्रम बाजार में बेचा जाता है।
  • अपने उत्पादन को मज़दूरों द्वारा निष्पादन के लिए पूँजीपति वर्ग के पास अर्थ और साधन हैं।
  • पूँजीपति वर्ग मजदूरों के दम पर अधिक अमीर बन गए।

प्र० 4. मार्क्स के अनुसार विभिन्न वर्गों में संघर्ष क्यों होते हैं?
उत्तर- मार्क्स ने दोनों वर्गों का अध्ययन किया है। प्रत्येक समाज में दो विरोधी समूह पाये जाते हैं। प्रारंभ से ही इन दो वर्गों के बीच संघर्ष सामान्यतया बढ़ता जा रहा है।

  • पूँजीपति वर्ग का उत्पादन के सभी साधनों पर नियंत्रण रहता है और यह वर्ग उत्पादन के अपने साधनों की सहायता से अन्य वर्गों का दमन करता है।
  • द्वितीय वर्ग मजदूर वर्ग है जिन्हें श्रमजीवी वर्ग की। संज्ञा दी गई है। शोषक और शोषित वर्ग के बीच संघर्ष सामान्यतया बढ़ता रहता है। इसका कारण यह है कि पूँजीपति वर्ग मजदूरों को शायद ही कुछ देने की इच्छा रखते हैं। मार्क्स के अनुसार, “आर्थिक प्रक्रियाएँ सामान्यतया वर्ग संघर्ष को जन्म देती हैं यद्यपि यह भी राजनीतिक और सामाजिक स्थितियों पर निर्भर करता है।”

प्र० 5. “सामाजिक तथ्य’ क्या हैं? हम उन्हें कैसे पहचानते हैं?
उत्तर-

  • ‘सामाजिक तथ्य’ सामूहिक प्रतिनिधित्व हैं जिनका उद्भव व्यक्तियों के संगठन से होता है।
  • वे किसी व्यक्ति के लिए विशिष्ट नहीं होते हैं, परंतु सामान्य प्रकृति के होते हैं और व्यक्तियों से स्वतंत्र होते हैं।
  • दुर्खाइम ने इसे ‘रगामी-स्तर’ कहा जोकि जटिल सामूहिकता का जीवन स्तर है जहाँ सामाजिक प्रघटनाओं का उद्भव हो सकता है।
  • दुर्खाइम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि उनका प्रदर्शन है कि समाजशास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जो अपूर्व तत्वों, जैसे सामाजिक तथ्यों का विज्ञान हो सकता है। परंतु एक ऐसा विज्ञान जो अवलोकन, आनुभविक इंद्रियानुभवी सत्यापनीय साक्ष्यों पर आधारित हो।
  • आत्महत्या पर दुर्खाइम के द्वारा किया गया अध्ययन नवीन आनुभविक आँकड़ों पर आधारित एक सर्वाधिक चर्चित उदाहरण है।
  • आत्महत्या के प्रत्येक अध्ययन का विशिष्ट रूप से व्यक्ति तथा उसकी परिस्थितियों से सरोकार है।

प्र० 6. ‘यांत्रिक’ और ‘सावयवी’ एकता में क्या अंतर है?
उत्तर- दुर्खाइम का मत है कि प्रत्येक समाज में कुछ मूल्य, विचार, विश्वास, व्यवहार के ढंग, संस्था और कानून विद्यमान होते हैं, जो समाज को संबंधों के बंधन से बाँध कर रखते हैं। इन तत्वों की उपस्थिति के कारण समाज में संबंधों और एकता का अस्तित्व कायम रहता है। उन्होंने सामाजिक एकता की प्रकृति के आधार पर समाज को वर्गीकृत किया जिसका समाज में अस्तित्व कायम है और जो निम्नलिखित हैं-
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प्र० 7. उदाहरण सहित बताएँ कि नैतिक संहिताएँ सामाजिक एकता को कैसे दर्शाती हैं?
उत्तर-

  • सामाजिकता को आचरण की संहिताओं में ढूंढा जा सकता था, जो व्यक्तियों पर सामूहिक समझौते के अंतर्गत थोपा गया था।
  • अन्य तथ्यों की तरह नैतिक तथ्य भी सामाजिक परिघटनाएँ हैं। उनका निर्माण क्रिया के नियमों से । हुआ है जो विशेष गुणों के द्वारा पहचाने जाते हैं। उनका अवलोकन, वर्णन और वर्गीकरण संभव है। और विशिष्ट कानूनों के द्वारा समझाया भी जा सकता है।
  • दुर्खाइम के मतानुसार, सामाज एक सामाजिक तथ्य है। इसका अस्तित्व नैतिक समुदाय के रूप में व्यक्ति से ऊपर था।
  • सामाजिक एकता समूह के प्रतिमानों और उम्मीदों के अनुरूप व्यवहार करने के लिए व्यक्तियों पर दबाव डालती है।
  • नैतिक संहिताएँ विशिष्ट सामाजिक परिस्थितियों का प्रदर्शन हैं।
  • एक समाज की उपयुक्त नैतिक संहिता दूसरे समाज के लिए अनुपयुक्त होती है।
  • वर्तमान सामाजिक परिस्थतियों का परिणाम नैतिक संहिताओं से निकाला जा सकता है। इसने समाजशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञान के समान बना दिया है और इसका बृहत उद्देश्य समाजशास्त्र को एक कष्टदायी वैज्ञानिक संकाय के रूप में स्थापित करने के अत्यधिक निकट है।
  • व्यवहार के प्रतिमानों का अवलोकन कर उन प्रतिमानों, संहिताओं और सामाजिक एकताओं को पहचानना संभव है, जो उन्हें नियंत्रित करते हैं। व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहारों के प्रतिमानों का अध्ययन कर अन्य रूप से अदृश्य वस्तुओं का अस्तित्व; जैसे- विचार, प्रतिमान, मूल्य और इसी प्रकार अन्य को आनुभविक रूप से सत्यापित किया जा सकता है।

प्र० 8. नौकरशाही की बुनियादी विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर-

  • नौकरशाहों के निश्चित कार्यालयी क्षेत्राधिकार होते हैं। इसका संचालन नियम, कानून तथा प्रशासनिक विधानों द्वारा होता है।
  • कार्यान्वयन के लिए उच्च अधिकारी द्वारा अधीनस्थ वर्गों को आदेश स्थायी रूप में दिए जाते हैं, परंतु जिम्मेदारियों को परिसीमित कर उसका जिम्मा अधिकारियों को सौंप दिया जाता है।
  • नौकरशाही में पदों की स्थितियाँ स्वतंत्र होती है।
  • अधिकारी और कार्यालय श्रेणीगत सोपान पर आधारित होते हैं। इस व्यवस्था के अंतर्गत उच्च अधिकारी निम्न अधिकारियों का निर्देशन करते हैं।
  • नौकरशाही व्यवस्थाओं का प्रबंधन लिखित दस्तावेजों के आधार पर चलाया जाता है। इन लिखित दस्तावेजों को फाइलें भी कहते है। इन फ़ाइलों को रिकॉर्ड के रूप में सँभाल कर रखा जाता है।
  • कार्यालय में अपने असीमित कार्यालय समय के विपरीत कर्मचारियों से समग्र एकाग्रता की अपेक्षा की जाती है। इस प्रकार कार्यालय में एक कर्मचारी का आचरण बृहत नियमों और कानूनों द्वारा नियंत्रित होता है।

प्र० 9. सामाजिक विज्ञान में किस प्रकार विशिष्ट तथा भिन्न प्रकार की वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता होती है?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 10. क्या आप ऐसे किसी विचार अथवा सिद्धांत के बारे में जानते हैं जिसने आधुनिक भारत में किसी सामाजिक आंदोलन को जन्म दिया हो?
उत्तर- स्वयं करें।

प्र० 11. मार्क्स तथा वैबर ने भारत के विषय में क्या लिखा है-पता करने की कोशिश कीजिए।
उत्तर-

  • मार्क्स ने तर्क दिया कि अर्थव्यवस्था लोगों के विचारों और विश्वासों का स्रोत है। वे इसी अर्थव्यवस्था के भाग हैं।
  • मार्क्स ने आर्थिक संरचना और प्रक्रियाओं पर अत्यधिक बल दिया। उनका विश्वास था कि वे प्रत्येक सामाजिक व्यवस्था के आधार हैं और मानव का इतिहास इसका साक्षी है।
  • मार्क्स का विश्वास था कि सामाजिक परिवर्तन के लिए वर्ग संघर्ष अत्यधिक महत्वपूर्ण ताकत है।
  • वैबर ने तर्क किया कि सामाजिक विज्ञान का समग्र उद्देश्य सामाजिक क्रियाओं की समझ के लिए व्याख्यात्मक पद्धति का विकास करना है।
  • सामाजिक विज्ञानों का केंद्रीय सरोकार सामाजिक कार्यों से है और कारण यह है कि मानव के कार्यों में व्यक्तिनिष्ठ अर्थ शामिल है, इसलिए सामाजिक विज्ञान से संबंधित जाँच की पद्धति को प्राकृतिक विज्ञान की पद्धति से भिन्न होना अनिवार्य है।
  • सामाजिक दुनिया, मूल्य, भावना, पूर्वाग्रह, विचार और इसी प्रकार अन्य जैसे व्यक्तिनिष्ठ मानव के गुणों पर आधारित है।
  • सामाजिक वैज्ञानिकों को समानुभूति समझ’ का निरंतर अभ्यास करना है। परंतु यह जाँच वस्तुनिष्ठ तरीके से किया जाना अनिवार्य है।
  • समाजशास्त्रीयों से आशा की जाती है कि वे दूसरों की विषयगत भावनाओं को परखने के बजाय केवल वर्णन करें।

प्र० 12. क्या आप कारण बता सकते हैं कि हमें उन चिंतकों के कार्यों का अध्ययन क्यों करना चाहिए जिनकी मृत्यु हो चुकी है? इनके कार्यों का अध्ययन न करने के कुछ कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर- स्वयं करें।

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