मौखिक अभिव्यक्ति (Oral Expression)
आप यह जानते ही हैं कि मनुष्य दो प्रकार से अपने भावों को प्रकट करता है- बोलकर और लिखकर। इसी आधार पर भाषा के दो रूप बने हैं- मौखिक और लिखित। मौखिक भाषा से दो प्रकार के कौशलों का विकास होता है- वाचन (बोलना) और श्रवण (सुनना)। मौखिक अभिव्यक्ति का उद्देश्य केवल अपनी बात दूसरे तक पहुँचाना ही नहीं है, अपितु भाषा को सही रूप से प्रयोग करना तथा प्रत्येक प्रत्येक अवसर के अनुसार भाषा का उचित प्रयोग करना भी है; जैसे-
बड़ों के लिए अलग प्रकार की शब्दावली का प्रयोग किया जाता है (आप, कृपया, कीजिए, बैठिए, क्षमा कीजिए आदि)।
औपचारिक व अनौपचारिक संबंधों में अलग-अलग तरह की भाषा का प्रयोग किया जाता है।
विवाह, उत्सव आदि अवसरों पर तथा शोक, दुर्घटना आदि के समय पर एक ही तरह की भाषा प्रयोग नहीं की जा सकती।
मौखिक अभिव्यक्ति के लिए निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
शुद्ध व स्पष्ट उच्चारण।
उचित शब्दावली का प्रयोग।
छोटे व सटीक वाक्य।
भावानुकूल, सहज भाषा का प्रयोग।
विराम-चिह्न किस बात पर बल देना है या किस पर नहीं- इस बात का ध्यान रखना।
निस्संकोच भाव से/आत्मविश्वास के साथ बोलना।
मौखिक अभिव्यक्ति के निम्नलिखित रूप होते हैं :
(1) काव्य-पाठ
(2) टेलीफोन-वार्ता
(3) कहानी कहना
(4) समाचार-वाचन
(5) भाषण
(6) घटना-वर्णन
(7) चुटकुले सुनाना
(8) चित्रवर्णन
(9) कार्यक्रम-संचालन
(10) अंत्याक्षरी
(1) काव्य-पाठ
काव्य-पाठ इस प्रकार किया जाना चाहिए कि सुनने वाला केवल सुनकर उसके भाव को समझ ले। काव्य-पाठ के समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान दें :
कविता को कंठस्थ (Learn by Heart) कर लें।
कविता के विषय के अनुसार उसकी गति, प्रवाह, सुर-ताल तथा उतार-चढ़ाव पर ध्यान दें।
काव्य-पाठ के समय मुख व वाणी में वे ही भाव हों, जो कविता में निहित हैं।
काव्य-पाठ के लिए निम्नलिखित विषय लिए जा सकते है : वीरता, देशभक्ति, प्रकृति आदि।
उदाहरण :
(1) वीरता
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटि तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई, फिर से नई जवानी थी।
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन् सत्तावन में,
वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हर बोलो के मुँह,
हमने सुनी कहानी थी।।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो,
झाँसी वाली रानी थी।
(2) देशभक्ति
हमारा भारत महान है।
इसकी संस्कृति ही इसकी पहचान है।
हमारा भारत महान है।
भारत ऐसा देश, जहाँ गुरु ही माता है।
भारत ही वह देश है, जहाँ गुरु ही जगविधाता है।।
भारत ही सत्य का ज्ञाता है।
भारत ही मानवता का निर्माता है।।
(2) टेलीफ़ोन-वार्ता
टेलीफ़ोन पर वार्ता के समय दूसरा व्यक्ति आपके सामने नहीं होता। इसलिए आप बेझिझक बातचीत कर सकते हैं।
आजकल टेलीफ़ोन हमारे जीवन का अटूट हिस्सा बन गया है। इसके द्वारा हम घर बैठे-बैठे कुछ भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और दूर बैठे व्यक्ति से बात कर सकते हैं।
टेलीफ़ोन पर वार्ता औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों प्रकार की होती है।
यदि आप मुस्कुराकर बात करेंगे, तो दूसरी ओर सुन रहा व्यक्ति उस मुस्कुराहट को बातचीत में अनुभव करेगा।
बातचीत स्पष्ट व स्थिति के अनुसार होनी चाहिए।
उदाहरण
हैलो !
हैलो मानव, कैसे हो ?
मैं ठीक हूँ, तुम्हारा क्या हाल-चाल है ?
सब बढ़िया है।
कहो, कैसे याद किया ?
बहुत दिनों से तुम्हारा फोन नहीं आया था। सोचा, चलो मैं ही बात कर लूँ। मौसी कैसी हैं ?
माँ ठीक हैं, तुम्हें याद करती हैं। कानपुर कब आ रहे हो ?
इस बार गर्मी की छुट्टियों में आऊँगा। मौसी को मेरा प्रणाम कहना। बाकी बातें बाद में करेंगे।
ठीक है। तुम भी मौसी-मौसा को मेरा प्रणाम बोल देना।
अच्छा, फोन रखता हूँ। जल्दी ही मिलेंगे।
बाय !
(3) कहानी कहना
कहानी कहना भी एक कला है। हम पहले से पढ़ी या सुनी कहानी कह सकते हैं या फिर चित्र अथवा सहायक शब्दों की सहायता से कहानी बनाकर भी कही जा सकती है। कहानी कहते समय इन बातों का ध्यान रखें :
कहानी पूर्ण रूप से याद हो। बीच में न अटकें।
कहानी की घटनाओं और संवादों को रोचक ढंग से प्रस्तुत करें। नीरसता से बचें।
कहानी रोचक व जिज्ञासा जगाने वाली हो। यह ऐसी हो कि इसमें अंत तक जिज्ञासा बनी रहे।
कहानी अच्छे विचार व सीख देने वाली हो।
विशेष : अधिक-से-अधिक कहानियों की पुस्तकें पढ़ें, ताकि कहानी कहने व बनाने की कला में निपुणता प्राप्त कर सकें।
(4) समाचार-वाचन
दूरदर्शन तथा रेडियो पर सभी समाचार सुनते हैं। समाचार-वाचक को देख और सुनकर शायद सभी का मन करता है कि वे भी समाचार-वाचक की भाँति समाचार सुना सकते। समाचार सुनने से सामान्य ज्ञान में वृद्धि तो होती ही है, साथ-ही-साथ बोलने की कला व विषय के अनुकूल वाचन का ज्ञान भी होता है तथा भविष्य में इसे अपना व्यवसाय भी बनाया जा सकता है। समाचार-वाचन की कला सीखने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान दें :
समाचार समान गति से पढ़ें।
उच्चारण शुद्ध व स्पष्ट हो।
विराम-चिह्नों का विशेष ध्यान रखें।
बड़े वाक्यों को बीच से तोड़कर पढ़ें।
किस वाक्य/शब्द पर अधिक बल देना है और किस पर कम, इस बात का ध्यान अवश्य रखें।
समाचार के विषयों का सोच-समझकर चुनाव करें। हिंसा व अपराध के समाचारों को समाचार-वाचन में कम-से-कम शामिल करें।
विशेष :
समाचार-वाचन की कला में निपुणता प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन दूरदर्शन के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित होने वाले समाचार देखिए और वाचकों की भाव-भंगिमाओं तथा बोलने के ढंग को देख-समझकर शीशे के सामने खड़े होकर स्वयं भी समाचार-वाचन का अभ्यास कीजिए।
(5) भाषण
आपने न जाने कितने व्यक्तियों को भाषण देते सुना होगा। कुछ वक्ता बहुत प्रभावशाली होते हैं, तो कुछ ऊबाऊ। भाषण देना भी एक कला है। इसे अभ्यास द्वारा सीखा जा सकता है। भाषण देने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें :
भाषण की तैयारी पहले से करनी पड़ती है।
दिए गए विषय पर भाषण तैयार कीजिए। भाषण की रोचकता बनाए रखने के लिए बीच-बीच में सूक्तियों व काव्य-पंक्तियों का प्रयोग कीजिए।
भाषण को कंठस्थ कर लीजिए। याद होने पर भी मुख्य बिंदुओं को एक पृष्ठ पर लिख लीजिए।
परिवारजनों को श्रोता बनाकर भाषण का अभ्यास कीजिए।
उतार-चढ़ाव, विराम-चिह्न व शुद्ध उच्चारण पर विशेष ध्यान दीजिए।
मंच पर पूरे आत्मविश्वास के साथ जाइए। भाषण आरंभ करने से पहले उपस्थित व्यक्तियों का अभिवादन कीजिए।
भाषण इस प्रकार दीजिए कि यह न लगे कि यह रटकर बोला जा रहा है।
भाषण के अंत में धन्यवाद अवश्य बोलिए।
हमने इस बात पर चर्चा की थी कि मौखिक भाषा से दो कौशलों का विकास होता है- बोलना तथा सुनना।
सुनने के कौशल के विकास के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना होगा :
श्रवण (सुनने के) कौशल का विकास
पाठ, कविता, समाचार, वार्ता आदि को ध्यानपूर्वक सुनना व समझना।ध्यानपूर्वक सुनकर शब्दों का शुद्ध उच्चारण सीखना।
श्रवण कौशल के विकास के लिए निम्नलिखित क्रियाएँ कक्षा में करवाई जा सकती हैं :
(1) गद्यांश सुनाना व उस पर आधारित प्रश्न पूछना।
(2) श्रुतलेख देना।
(3) निर्देश देते हुए चित्र रचना करवाना।
(1) गद्यांश सुनकर प्रश्नों के उत्तर देना
अपठित गद्यांश में पढ़कर गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखने होते हैं, परन्तु यहाँ गद्यांश सुनकर प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। अभ्यास-प्रश्न-रिक्त स्थान, एक शब्द में उत्तर देना, बहुविकल्पीय अथवा सत्य/असत्य पर आधारित होते हैं।
उदाहरण :
दो तोते थे- सुपंखी और सुकंठी। दोनों देखने में समान थे, क्योंकि वे जुड़वाँ भाई थे। एक दिन भयंकर आंधी आई और वृक्ष की डाली टूट गई, जिस पर उनका बसेरा था। आँधी के कारण सुपंखी चोरों की बस्ती में जा गिरा और सुकंठी एक ऋषि के आश्रम में। दोनों तोते अलग-अलग परिवेश में पलने लगे। एक दिन एक राजा शिकार खेलते समय रास्ता भटक गया और चोरों की बस्ती के पास से गुजरा, तभी कर्कश आवाज सुनाई दी- ”पकड़ो-पकड़ो, राजा को लूट लो।” राजा ने देखा कि एक तोता यह सब बोल रहा है, तो वह घबराकर वहाँ से चल दिया। आगे वह आश्रम के पास पहुँचा, तभी आवाज सुनाई दी- ”स्वागत है, महाराज! आश्रम में पधारिए।” राजा ने देखा वही तोता बोल रहा है। राजा ने उसके दो प्रकार के व्यवहार के बारे में पूछा, तब ऋषि ने बताया कि यह तोता वह तोता नहीं है, जिसे आपने चोरों की बस्ती में देखा था, बल्कि यह उसका जुड़वाँ भाई सुकंठी है। इसका भाई सुपंखी चोरों की बस्ती में पला है, इसलिए उसका व्यवहार बुरा है। यह आश्रम में पला है, इसलिए इसका व्यवहार अच्छा है।
(1) तोतों के नाम गद्यांश के लिए एक उचित शीर्षक बताइए। – दो तोतों की कथा।
(2) तोतों के नाम क्या थे ? – सुपंखी और सुकंठी।
(3) दोनों किसके कारण अलग हुए? – आँधी के कारण।
(4) सुपंखी कहाँ जा गिरा ?- चोरों की बस्ती में।
(5) सुकंठी किस जगह जा गिरा ? – ऋषि के आश्रम में।
(6) किसन राजा के साथ बुरा व्यवहार किया ? सुपंखी ने।
(7) सुकंठी का व्यवहार कैसा था ? – अच्छा।
(8) दोनों तोतें अलग-अलग ….. में पलने लगे। – परिवेश
(9) सुपंखी और सुकंठी देखने में समान क्यों थे ? – जुड़वाँ होने के कारण।
(10) सुपंखी ने कैसी वाणी में बात की ? – कर्कश।
(2) श्रुतलेख लेना
श्रुत + लेख यानी सुनकर लिखना।
‘श्रुतलेख’ से सुनकर समझने व सही रूप से लिखने की क्षमता का विकास होता है। इसके द्वारा हम शब्दों के शुद्ध उच्चारण को ध्यानपूर्वक सुनकर अपनी वर्तनी संबंधी अशुद्धियों को सुधार सकते हैं। श्रवण-कौशल द्वारा लिखने की गति में भी सुधार होता है।
ध्यान देने योग्य बातें :
श्रुतलेख के समय अपना ध्यान केवल शिक्षक के उच्चारण पर रखें। ध्यान इधर-उधर न भटकाएँ।
नवीन व कठिन शब्दों के उच्चारण पर विशेष ध्यान दें।
शब्द को पहली बार केवल ध्यानपूर्वक सुनें, दूसरी बार लिखना आरंभ करें, तीसरी बार उच्चारण किए जाने पर शब्द का उच्चारण से मिलान करें।
मात्राओं के उच्चारण पर विशेष ध्यान दें, क्योंकि हिंदी ही एकमात्र भाषा है, जिसमें वर्ण का जैसा उच्चारण किया जाता है, उसे वैसा ही लिखा जाता है।
शिक्षक द्वारा जाँचे गए श्रुतलेख में यदि कोई अशुद्धि हो, तो उसे पाँच-पाँच बार अवश्य लिखें, ताकि वह अशुद्धि दोबारा न हो।
(3) निर्देश सुनकर चित्र रचना करना
श्रवण कौशल के विकास के लिए निर्देश सुनकर चित्र रचना करने की गतिविधि भी करवाई जा सकती है।
इसके लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें :
सुनने से पहले एकाग्रचित्त होकर बैठें।
अध्यापक द्वारा दिए गए निर्देशों को ध्यानपूर्वक सुनें।
दूसरी बार निर्देश सुनकर रचना आरंभ करें।
तीसरी बार दोहराएँ जाने तक रचना समाप्त करें व मिलान करें।
समय का ध्यान रखें।
किस दिशा में क्या बनाना है, इसका विशेष ध्यान रखें।
अंत में रंग भरकर शिक्षक को जाँचने के लिए दें।
उदाहरण :
धयानपूर्वक निर्देश सुनकर चित्र रचना कीजिए :
(1) पृष्ठ के दाई ओर दो बड़े वृक्ष हैं।
(2) वृक्षों के बीच में एक झोंपड़ी है।
(3) झोंपड़ी के सामने से बाई ओर एक रास्ता जाता है।
(4) रास्ते के दोनों ओर सुंदर-सुंदर फूल व घास लगे हैं।
(5) रास्ते के दाई ओर कुछ पहाड़ियों हैं।
(6) आकाश में दो बादल दिखाई दे रहे हैं।
(7) बादलों के पीछे से सूरज झाँक रहा है।
(8) आकाश में पाँच पक्षी उड़ रहे हैं।