Adult Education Essay in Hindi

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Adult Education Essay in Hindi

प्रौढ़ शिक्षा पर निबंध
रूपरेखा : प्रस्तावना – प्रौढ़ शिक्षा क्या है – प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत – भारत में अंग्रेजी शासन में साक्षरता की कमी – प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रमों की असफलताओं के कारण – लोगों में राजनीतिक चेतना – प्रौढ़ शिक्षा की विशेषताएं – प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता – प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं – उपसंहार।

तीस वर्ष से पचास वर्ष की अवस्था (वय) वाले स्त्री-पुरुष प्रौढ़ कहे जाते हैं। ऐसे
निरक्षर या अशिक्षित लोगों को शिक्षा देना, उन्हें साक्षर (बनाना) प्रौढ़ शिक्षा है। निरक्षर, अर्द्धसाक्षर या विस्मृताक्षर प्रौढ़ों को पुनः शिक्षण देना भी प्रौढ़-शिक्षा है।
अशिक्षित रहने के कारण भारत जैसे पिछड़े देश में व्यक्ति कई कारणों से अशिक्षित व अनपढ़ रह जाया करते है। कई बार तो पढ़ने-लिखने के प्रति संस्कार, जाती या अरुचि बाधक बन जाती है। तो कई बार निर्धनता अथवा घर-परिवार की आवश्यकता बाधक बन जाती है। स्वतंत्रता से पूर्व देहातों में ऐसे कारण प्रमुख रूप से हुआ करते थे, परंतु आज जबकि शिक्षा का अत्यधिक प्रचार हो गया है। तब भी दूर देहातों में इस समस्या का ठीक प्रकार से समाधान सम्भव नहीं हो पाया है। प्रायः देखा गया है कि देहातों व कस्बो में अधिसंख्य प्रौढ़ आयु के व्यक्तियों में शिक्षा का अभाव है। अभी कुछ समय से ऐसे प्रौढ़-शिक्षा की व्यवस्था की गईं है। वह भी एकदम निःशुल्क ओर उनके घरों तथा संस्थानों के एकदम निकट। आजादी के पहले भी रात्रि पाठशाला के रूप में प्रौढ को शिक्षित करने की योजना शुरू हुई थी।

परिपक्व आयु वाले व्यक्ति को प्रौढ़ कहा जाता है। आजकल प्रायः चालीस वर्ष की आयु वाले व्यक्ति को प्रौढ़ मान लिया जाता है। यधपि प्राचीन काल मे जब मनुष्य की औसत आयु प्रायः सो वर्ष होती थी। तब प्रौढावस्था का क्रम पचास वर्ष से अधिक माना जाता था। जहाँ आयु का प्रशन है। शिक्षा ग्रहण करने के मार्ग में यह कदापि बाधक नहीं हुआ करती है। शिक्षा तो प्रतेक आयु-वर्ग के व्यक्ति के लिए दीपक समान प्रकाश प्रदान करने वाली होती है। दूसरे शब्दों में तीस वर्ष से पचास वर्ष की अवस्था (वय) वाले स्त्री-पुरुष प्रौढ़ कहे जाते हैं। ऐसे निरक्षर या अशिक्षित लोगों को शिक्षा देना, उन्हें साक्षर (बनाना) प्रौढ़ शिक्षा है। निरक्षर, अर्द्धसाक्षर या विस्मृताक्षर प्रौढ़ों को पुनः शिक्षण देना भी प्रौढ़-शिक्षा है। आज देश का लगभग 40 प्रतिशत, प्रौढ़ वर्ग निरक्षर है। इसलिए वह मानसिक दृष्टि से कमजोर है, सामाजिक रूप से पिछड़ा है, धार्मिक रूप से अंध-विश्वासी है और राजनीतिक रूप से ‘वोट’ के महत्व से अनभिज्ञ है। परिणामत: वह उपहास और निरादर का पात्र और शोषण का शिकार है। अत्यन्त भोला होने से वह धूततों के माया-जाल में जल्दी फँस जाता है।

आजादी के बाद जनता पार्टी के शासन काल मे 2 अक्टूबर , 1978 से प्रौढ़ शिक्षा शुरू हुई। इसमें शुरुआती दौर में 15 से 35 आयु वर्ग के लोंगो को शिक्षा दी जाती थी। लेकिन अब ऊपरी आयु सीमा हटा दी गयी है। अशिक्षित जनता में भी अनपढ़ स्त्रियों को संख्या पुरुषों की अपेक्षा बहुत अधिक थी। पता नहीं क्यों कन्याओं को पढ़ाना महत्त्वहीन माने जाने लगा। अपवाद स्वरूप कुछ स्त्रियाँ पढ़-लिखकर विदुपी बन गईं। महर्पि दयानन्द, राजा राममोहनराय, पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी, भारतेन्दु हरिचन्द्र, पंडित मदनमोहन मालवीय आदि समाज-सुधारकों ने स्त्री-शिक्षा पर बल दिया। आगे चलकर महात्मा गाँधी ने स्त्री शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर जोर
दिया। देश के स्वतंत्र होने के बाद सन 1951 में प्रथम जनगणना में भारत में शिक्षितों की संख्या 16.6 प्रतिशत थी।

देश में जब प्रार्थमक और माध्यमिक स्कूलों का जाल-सा बिछ गया तो राष्ट्रीय सरकार
का ध्यान उन अशिक्षित लोगों की ओर गया जिनकी आयु प्राथमिक स्कूलों में भर्ती होने के योग्य न थी या वे दिन में कमाई करने के कारण उन विद्यालयों में जा नहीं सकते थे। राष्ट्र की उन्नति और प्रगति में इस वर्ग का विशेष हाथ रहता है। अशिक्षित होने के कारण प्रौढ़ वर्ग का जीवन-जीने के मूल्यों से अपरिचित, सामाजिक गिरावट, आर्थिक दुर्दशा तथा राजनीतिक जागरूकता के अभाव में राष्ट्र कौ उनति में बाधक था। फल: 2 अक्तूबर, 1978 को राष्ट्रपिता गाँधी के जन्मदिन से ‘ प्रौढ़ -शिक्षा ‘ का विधिवत्‌ श्रीगणेश हुआ अर्थात शुरुआत हुई | इसके लिए छह सौ करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया।

भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना से पूर्व भारत का प्राय: प्रत्येक नागरिक शिक्षित
होता था। राष्ट्र में इसके लिए कुछ संस्थाएँ प्रचलित थीं। गाँव-नगरों में मंदिरो में स्थापित पाठशालाएँ, मदरसे आदि बच्चों की उचित शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध करती थीं। इनके अतिरिक्त उच्च शिक्षा के लिए गुरुकुल और विश्वविद्यालय भी थे। एक अंग्रेज विद्वान के अनुसार भारत में साक्षरता का प्रतिशत विश्व में सबसे अधिक था।

अंग्रेजी राज्य में पाठशालाओं का प्रारम्भिक स्वरूप शुरू हुआ। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति
प्रारंभ हुई। फलत: भारत का निम्ल मध्यवर्ग तथा ग्रामीण जनता इससे वंचित रह गई या जानबूझकर वंचित कर दी गई। इस कारण निरक्षरता बढ़ी। यह इस सीमा तक बढ़ी कि आज विश्व के निरक्षर वयस्कों की सम्पूर्ण संख्या का आधे से अधिक भाग भारत में है। भारत की जनता अशिक्षित रहे, इसमें अंग्रेजों का अपना हित था। कारण, भारतवासी यदि शिक्षित हो जाएगा तो कायदे-कानूनों को समझने लगेंगे।

राजकीय स्तर पर रात्रि पाठशालाएँ खुलीं, प्रौढ़ स्त्रियों के लिए दोपहर कै खाली समय
में पढ़ाने को योजना बनी। रात्रि हाईस्कूल तथा सीनियर-सेकेण्डरी स्कूल खोले गए।
कॉलिजों में भी रात्रि-कक्षाओं की व्यवस्था की गई। धीरे-भीरे यह प्रौढ़-शिक्षा कार्यक्रम
गति पकड़ने लगा। सरकार ने कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं का भी सहयोग इस योजना की कार्याग्विति में लिया। सभी राज्यों में प्रौढ़ शिक्षा केद्र प्रारम्भ हुए |

परिणाम सुखद निकले। शहरी क्षेत्र के अनपढ़ निवासियों ने इसमें ज्यादा रुचि दिखाई। परिणामत: शिक्षितों की संख्या शहरों में 70 प्रतिशत तक पहुँच गई। केरल प्रान्त में यह संख्या 10 प्रतिशत के लगभग है। प्रश्न है अशिक्षित प्रौढों में शिक्षा के प्रति उत्साह कैसे जागृत हो ? सूर्योदय से सूर्यास्त तक जी तोड़ काम करने वाला किसान या मजदूर जब शाम को थका हारा घर लौटता है, तो उसमें इतनी शक्ति और मानसिक शान्ति कहाँ रह जाती है, जो वह शिक्षा के लिए लालायित हो सके। इसलिए रात्रि पाठशालाओं में पढ़ाई का वातावरण ही नहीं बन पाता। दिल्ली प्रात के ‘ नाइट-स्कूल ‘ इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं। जहाँ 2 से 3 पीरियडों के बाद ही कक्षाएँ खाली नजर आती हैं।

दूसरे, साक्षरता अभियान को रोजगारोन्मुख नहीं बनाया गया। अधिक प्रचार तो ‘ काम के बदले अनाज ‘ का रहा। परिणामत: पढ़ने के इच्छुक प्रौढ़ों ने पढ़ने-लिखने की अपेक्षा दूसरी ओर ध्यान लगाया।

तीसरी ओर, इस वर्ग को पढ़ाने वाले की मनःस्थिति स्वस्थ, उत्साहप्रद एवं स्वयंस्फूर्त होनो चाहिए। उनके वातावरण में घुल-मिलकर एकात्मक होने की चेष्टा होनी चाहिए। यह तभी सम्भव है, जब वेतन अच्छा हो। यह केवल मात्र 1000 रुपये मासिक रखा गया, जो अत्यल्प है। दूसरी ओर, 50 प्रतिशत स्थान स्त्रियों के लिए सुरक्षित रखे गए। यह भी एक रुकावट बनी। कारण, शिक्षित महिलाएँ इतने थोड़े वेतन पर नहीं आती।

चौथी ओर, राजीव गाँधी के अनुसार निर्धारित राशि का 35 प्रतिशत तो नौकरशाही
और लालफीताशाही ही खा जाती थी। परिणामत: उस राशि का 15% रुपया ही इस योजना की कार्यान्विति में खर्च होता था, जिसने ‘ऊँट के मुँह में जीरा’ मुहावरे को चरितार्थ किया है।

आज भारत का नागरिक जिन राजनीतिक स्थितियों से गुजर रहा है, उससे उसमें
राजनीतिक चेतना जागृत हो रही है। आज का झुग्गी झोंपड़ी ताला गरीब और सुदूर गाँव में रहने वाला व्यक्ति भी राजनीति के छल को, हथकण्डों को, उसके उतार-चढ़ाव
को समझने लगा है। राजनीतिक चेतना ने उसे अपने बच्चों को पढ़ाने को विवश किया
है। जब वह यह देखता है कि गाँव का कल का लड़का आज का जज है, प्रोफेसर है,
इंजीनियर है, मुख्यमंत्री है, केन्द्रीय सरकार को भी चलाता है तो उसका हृदय अपने लाडलों को भी इस पद पर देखने के स्वप्न लेने लगता है। यह स्वण उसे बच्चों को शिक्षित करने के लिए विवश करता है। प्रौढ़ शिक्षा का भविष्य अब उज्ज्वल है । राजनीतिक चेतना और नई सरकार की नीयत प्रौढ़ों की नियति को बदलेगी।

वयस्कों को शिक्षित करना बच्चों को कई तरीकों से शिक्षित करने से अलग है, यह देखते हुए कि वयस्कों के पास ज्ञान और कार्य अनुभव है जो सीखने के अनुभव में जोड़ सकते हैं। अधिकांश वयस्क शिक्षा स्वैच्छिक है, इसलिए, प्रतिभागियों को आम तौर पर स्व-प्रेरित किया जाता है, जब तक कि नियोक्ता द्वारा भाग लेने की आवश्यकता न हो। वयस्क शिक्षा के अभ्यास को कहा जाता है बच्चों के लिए पारंपरिक स्कूल-आधारित शिक्षा से इसे अलग करना शिक्षा शास्त्र। बच्चों के विपरीत, वयस्कों को मदद के लिए दूसरों पर भरोसा करने के बजाय अधिक आत्म-निर्देशित के रूप में देखा जाता है।

वयस्क परिपक्व हैं और इसलिए उनके पास ज्ञान है और उन्होंने जीवन के अनुभव प्राप्त किए हैं जो उन्हें सीखने की नींव प्रदान करते हैं। सीखने के लिए एक वयस्क की तत्परता जानकारी की आवश्यकता से जुड़ी होती है। सीखने के लिए उनका उन्मुखीकरण विषय-केंद्रित होने के बजाय समस्या-केंद्रित है। सीखने के लिए उनकी प्रेरणा आंतरिक है। वयस्क अक्सर प्रभावी ढंग से सीखने के लिए व्यावहारिक रूप से अपने ज्ञान को लागू करते हैं। उन्हें एक उचित उम्मीद होनी चाहिए कि जो ज्ञान वे प्राप्त करते हैं, उससे उन्हें अपने लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए, 1990 के दशक के दौरान, कई वयस्क, जिनमें ज्यादातर कार्यालय कर्मचारी शामिल हैं, ने कंप्यूटर प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में दाखिला लिया। इन पाठ्यक्रमों के बुनियादी उपयोग सिखाना होगा ऑपरेटिंग सिस्टम या विशिष्ट अनुप्रयोग सॉफ़्टवेयर। हालाँकि, कुछ देशों में, जिनमें वयस्क शिक्षा की उन्नत प्रणालियाँ हैं, व्यावसायिक विकास द्वितीयक संस्थानों के माध्यम से उपलब्ध है और अपने शिक्षा मंत्रालय या स्कूल बोर्डों के माध्यम से और गैर-सरकारी संगठनों के माध्यम से व्यावसायिक विकास प्रदान करते हैं। इसके अलावा, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों, और पेशेवर संगठनों द्वारा विभिन्न शैक्षणिक स्तरों पर पेश किए गए मौजूदा और इच्छुक चिकित्सकों के लिए वयस्क शिक्षा के बारे में कार्यक्रम हैं।

प्रौढ़ शिक्षा की आवश्यकता 15 से 35 आयु वर्ग के पुरुषों एवं महिलाओं में चेतना एवं जागति उत्पन्न करना है जिससे वे शिक्षा के महत्व को समझ सकें और उनका शोषण बन्द हो जाए। अशिक्षितों का शोषण अभी भी ग्रामीण सूदखोर एवं महाजन कर रहे हैं। उन्हें न तो सरकारी कानूनों की जानकारी है और न ही इस बात का पता है कि सरकार ने उनके कल्याण के लिए क्या-क्या योजनाएं चला रखी हैं। ग्रामीण बैंकों से किस प्रकार कर्ज मिलता है, इस सम्बन्ध में भी वे अनभिज्ञ हैं।

प्रौढ़ शिक्षा के लाभार्थियों को केवल अक्षर ज्ञान करा देना ही पर्याप्त नहीं है अपितु उन्हें जन कल्याणकारी कार्यक्रमों यथा परिवार नियोजन, वृक्षारोपण, पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य एवं सफाई, कृषि के उन्नतिशील बीजों, उर्वरकों, सहकारी समितियों, ग्रामीण बैंकों आदि के बारे में भी जानकारी कराई जाती है, जिससे वे व्यावहारिक लाभ उठा सकें। प्रौढ़ शिक्षा के द्वारा समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को लाभान्वित करके उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि करके उसे देश का उपयोगी नागरिक बनाया जा सकता है।

प्रौढ़ शिक्षा निर्विवाद रूप से एक राष्ट्रीय आवश्यकता है। विकास का संबंध केवल कल कारखानों, बांधों और सड़कों से नहीं, इसका संबंध बुनियादी तौर पर लोगों के जीवन से है। इसका लक्ष्य है कि लोगों की भौतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नति। मानवीय पक्ष तथा उससे जुड़ी हुई बातें सबसे महत्वपूर्ण है। भविष्य में हमें इन बातों पर अधिक ध्यान देना होगा। निरक्षरता के कारण हमारे देश में विकास की दिशा में किए जाने वाले प्रयास निरर्थक प्रमाणित हो रहे हैं। प्रौढ़ शिक्षा की समस्याएं निम्न है –

  • अभिप्रेरणा का अभाव
  • प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का अनाकर्षण वातावरण
  • सतत शिक्षा का अभाव
    • अभिप्रेरणा का अभाव

प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम की सफलता बहुत कुछ अंशों में प्रौढ़ो के ऊपर निर्भर करती है, सरकारी तौर पर तथा स्वयंसेवी संस्थानों के द्वारा किए जा रहे। निरंतर प्रयासों के बावजूद भी प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों पर उपस्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है। प्रौढ़ सोचते हैं कि इस आयु में पढ़ लिख कर क्या लाभ होगा तथा वे प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में जाकर पढ़ना दुखद समझते हैं। शिक्षा की चुनौती नीति संबंधी परिप्रेक्ष्य में कहा गया है कि पर्याप्त प्रेरणा के अभाव के कारण निरीक्षण लोग प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में की ढंग से भाग नहीं ले पाते हैं। प्रश्न यह है कि हमारे निरीक्षण प्रौढ़ होने के लिए प्रेरित क्यों नहीं हो पा रहे हैं यह निर्विवाद सत्य है कि मनुष्य उसी और आकर्षित होता है तथा उसी कार्य को करने के लिए प्रेरित होता है।

    • प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का अनाकर्षण वातावरण

हमारे प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का वातावरण भी अनाकर्षण होना, प्रौढ़ शिक्षा के वांछित विकास में बाधक सिद्ध हुआ। प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों पर निरीक्षण प्रौढ़ो से उचित व्यवहार नहीं किया जाता। जब तक प्रौढ़ शिक्षा केंद्रों का शैक्षिक वातावरण अधिगम के लिए सहायक नहीं होगा। तब तक प्रौढ़ शिक्षा प्राप्ति के लिए शिक्षा केंद्रों पर नहीं जाएंगे। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक निष्ठावान हो पूर्व प्रशिक्षित हो तथा निरीक्षकों के साथ आत्मीयता सेवा आदर पूर्ण व्यवहार कर सकें।
सीखने का वातावरण सुधरा हुआ हो कक्षाओं में प्रकाश की अच्छी व्यवस्था हो तथा उपयुक्त अध्ययन सामग्री हो शिक्षार्थियों के मन में यह भावना उत्पन्न हो कि कार्यक्रम चलाने वालों को हमारी चिंता है। उन्हें विश्वास दिलाया जाए कि साक्षरता शुरू में ही नीरस लगती है। परंतु बाद में यह अत्यंत सरस हो जाती है। प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में चार्ज तथा पोस्टर बनाया जा सकता है। यह पोस्टर पर्यावरण स्वच्छ पानी स्वास्थ्य टीका लगाना सीमित परिवार आदि ऐसी बातों से संबंधित होने चाहिए। जो प्राउड के जीवन से घनिष्ठ रूप से जुड़ी है।

    • सतत शिक्षा का अभाव

उत्तर साक्षरता तथा सतत शिक्षा का उचित प्रबंध ना होना भी प्रौढ़ शिक्षा की असफलता का एक कारण है। प्रौढ़ो को साक्षर बन जाने के उपरांत पुनः निरीक्षण होने से रोकने के लिए उत्तर साक्षरता तथा सतत शिक्षा की व्यवस्था होना अत्यंत आवश्यक है। यदि 9 छात्रों को पढ़ने लिखने के अवसर नहीं मिलते हैं तो वह कुछ ही समय के उपरांत पुनः निरीक्षण बन जाते हैं। इसलिए नवसाक्षरो को अनवरत शिक्षा देने की आवश्यकता होती है, जिससे यह निरंतर पढ़ते लिखते रहें तथा स्थाई रूप से साक्षर बन जाए।
लेकिन प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत यह एक समस्या बन गई है आवश्यकता इस बात की है कि प्रौढ़ो को उपयुक्त साहित्य के माध्यम से लगातार शिक्षा दी जाती रहे। जिससे निरक्षर होने की संभावना ना रहे, प्रौढ़ो की उत्तर साक्षरता तथा सतत शिक्षा के लिए आकाशवाणी व दूरदर्शन सुविधाओं का उपयोग प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। उनके लिए विशेष रूप से तैयार किया गया साहित्य, समाचार पत्र, पत्रिकाएं इत्यादि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

इस प्रकार शिक्षा हमारे जीवन की आवश्यकता है। और इसके लिए उम्र कोई बाधा नही बनना चाहिए। इसके लिए ही सरकार ने उन व्यक्तियो के लिए प्रौढ़ शिक्षा की शुरुआत की है। जो किसी कारण वश अपनी शिक्षा बीच मे ही छोड़ देते है। और इस अभियान से उन व्यक्ति को भी लाभ पहुचता है, जो बिल्कुल भी नही पढे-लिखे है, और ना ही उन्हें पड़ने का समय मिल पाता है। वो रात में भी शिक्षा ले सकते है रात्रिकालीन शाखाओं में जाकर इस प्रकार हम कह सकते है। पड़ेगा इंडिया तभी तो बढेगा इंडिया हमारे देश की जरूरत है। भारत की विशाल जनसंख्या को देखते हुए यह आवश्यक है कि यहाँ शिक्षित व्यक्तियों को प्रौढ शिक्षा में सक्रिय योगदान करना चाहिए। निरक्षरा को प्रौढ़ शिक्षा केन्द्रों तक लाना और उन्हें अक्षर ज्ञान कराना साधारण काम नहीं है। परिपक्व आयु वाले व्यक्ति को प्रौढ़ कहा जाता है।

 

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