Class 6 Sanskrit Chapter 10 कृषिकाः कर्मवीराः Summary Notes
कृषिकाः कर्मवीराः पाठ का परिचय
इस पाठ में हमारे अन्नदाता किसानों की कर्मठता और उनके संघर्षमय जीवन के विषय में बताया गया है। सर्दी-गर्मी के कष्टों को सहन करते हुए वे हम सब के लिए अन्न का उत्पादन करते हैं। अत्यधिक परिश्रम करने के उपरांत भी उन्हें निर्धनता का जीवन व्यतीत करना पड़ता है।
कृषिकाः कर्मवीराः Summary
इस पाठ में बताया गया है कि कृषक लोग ही सच्चे कर्मवीर हैं। सर्दी हो या गर्मी, कृषक कठोर परिश्रम करते हैं। गर्मी की ऋतु में शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है और सर्दी में शरीर ठिठुरता है, परन्तु कृषक लोग कभी हल से तो कभी कुदाल से खेत को जोतते रहते हैं।
कृषक लोगों का जीवन कष्टमय होता है। वे स्वयं कष्ट उठाकर मानव मात्र की सेवा करते हैं। उनके पास न घर है, न वस्त्र हैं और न भोजन है। फिर भी वे मनुष्यों को सुख देने के लिए तत्पर रहते हैं। अतः कृषक ही सच्चे अर्थों में कर्मवीर हैं।
कृषिकाः कर्मवीराः Word Meanings Translation in Hindi
(क) सूर्यस्तपतु मेघाः वा वर्षन्तु विपुलं जलम्।
कृषिका कृषिको नित्यं शीतकालेऽपि कर्मठौ॥
ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं शीते कम्पमयं सदा।
हलेन च कुदालेन तौ तु क्षेत्राणि कर्षतः॥2॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
सूर्यस्तपतु (सूर्य: + तपतु)-सूर्य तपाये (the Sun may burn), वर्षन्तु-बरसाएँ (may rain), विपुलम्-बहुत सारा (huge amount), कृषिका-किसान की स्त्री अथवा स्त्री किसान (a farmer’s wife or a lady farmer), कर्मठौ-काम में लगे हुए (active), सस्वेदम्-स्वेद (पसीने) से युक्त (full of sweat), कर्षत:-जुताई करते हैं (to plough), कृषिकः-किसान (farmer), कुदालेन-कुदाल से (with spade)
अन्वयः (Prose-order)
1. सूर्यः तपतु मेघाः वा विपुलं जलं वर्षन्तु। कृषिका कृषकः (च) शीतकाले अपि नित्यम् कर्मठौ (स्तः)।
2. ग्रीष्मे शरीरं सदा सस्वेदम् शीते (च) कम्पमयम् (अस्ति); तौ तु हलेन कुदालेन च क्षेत्राणि कर्षतः।
सरलार्थ :
चाहे, सूरज तपाये या बादल अत्यधिक बरसें किसान तथा उसकी पत्नी सदा सरदी में भी काम में लगे रहते हैं। गरमी में शरीर पसीने से भरा हुआ होता और ठंड में कंपनयुक्त अर्थात् काँपता रहता है किंतु फिर भी वे दोनों हल से अथवा कुदाल से खेतों को जोतते रहते हैं।
English Translation:
The Sun may burn or the clouds may pour huge amount of water, the farmer and his wife are always active even in winter, In summer the body is always full of sweat and in winter he shivers ie, it is shivering but they keep on ploughing the fields with their plough or with the spade.
(ख) पादयोन पदत्राणे शरीरे वसनानि नो।
निर्धनं जीवनं कष्टं सुखं दूरे हि तिष्ठति॥3॥
गृहं जीर्णं न वर्षासु वृष्टिं वारयितुं क्षमम्।
तथापि कर्मवीरत्वं कृषिकाणां न नश्यति॥4॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) : पदत्राणे-जूते (shoes), पादयोः-पैरों में (on feet), वसनानि-वस्त्र (clothes), तिष्ठति-रहता है ( stays), जीर्णम्-पुराना (old), वृष्टिम्-बारिश को (rain), वारयितुम्-रोकने के लिए (to ward off), क्षमम्-समर्थ (able/capable), कर्मवीरत्वम्-कर्मठता (activity/active nature), न नश्यति-नष्ट नहीं होता (is not destroyed/ does not stop)।
अन्वयः (Prose-order)
3. पादयोः पदत्राणे न: (स्तः) शरीरे वसनानि न (सन्ति), निर्धनम् कष्टम् जीवनम् कष्टम्, सुखम् दूरे हि तिष्ठति।
4. जीर्णम् गृहम् वर्षासु वृष्टिं वारयितुम् क्षमम् न (अस्ति); तथापि कृषिकाणाम् कर्मवीरत्वं न नश्यति।
सरलार्थ : पैरों में जूते नहीं, शरीर पर कपड़े नहीं, निर्धन, कष्टमय जीवन है, सुख सदा दूर ही रहता है। घर टूटा-फूटा (पुराना) है, वर्षा के समय बारिश (अर्थात् बारिश का पानी अंदर आने से) रोकने में असमर्थ है। तो भी किसानों की कर्मनिष्ठा नष्ट नहीं होती अर्थात् वे कृषि के काम में लगे रहते हैं।
English Translation: There are no shoes on the feet, no clothes on the body. Life is full of poverty and there are difficulties and comforts stay far away. Their dwelling is old and during rains it is not able to keep off the rain i.e; the rain water (from seeping in.) but their activity (hardwork) does not stop.
(ग) तयोः श्रमेण क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि सर्वदा।
धरित्री सरसा जाता या शुष्का कण्टकावृता॥5॥
शाकमन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा सर्वेभ्य एव तौ।
क्षुधा-तृषाकुलौ नित्यं विचित्रौ जन-पालको॥6॥
शब्दार्थाः (Word Meanings):
तयोः-उन दोनों के (both of them), सस्यपूर्णानि-फसल से युक्त (full of crops), सर्वदा-हमेशा (always), धरित्री-धरा (earth/land), सरसा-रसपूर्ण। हरी-भरी (full of greenry), शुष्का-सूखी (dry), कण्टकावृता (कण्टक+आवृता)-काँटों से ढकी हुई (covered with thorns), शाकमन्नम् (शाकम्+अन्नम् )-सब्जी तथा अन्न (vegetables and grains), दत्त्वा-देकर (giving), क्षुधा-तृषाकुलौ (तृषा + आकुलौ)-भूख-प्यास से व्याकुल (distressed with hunger and thirst)।
अन्वयः (Prose-order)
5. तयोः श्रमेण क्षेत्राणि सर्वदा सस्यपूर्णानि (सन्ति), या धारित्री शुष्का कण्टकावृता (च आसीत्) (सा) सरसा जाता।
6. तौ सर्वेभ्यः एव शाकम् अन्नम् फलं दुग्धं (च) दत्त्वा नित्यं क्षुधा-तृषाकुलौ (स्तः) (तौ) विचित्रौ जनपालको (स्तः)।
सरलार्थ :
उन दोनों (किसान तथा उसकी पत्नी) के परिश्रम से खेत सदा फसलों से भर जाते हैं। धरती जो पहले सूखी व काँटों से भरी थी अब हरी-भरी हो जाती है। वे दोनों सब को सब्जी, अन्न, फल-दूध (आदि) देते हैं (किन्तु) स्वयं भूख-प्यास से व्याकुल रहते हैं। वे दोनों विचित्र (अनोखे) जन पालक हैं। (यह एक विडंबना है कि दूसरों की भूख मिटाने वाले स्वयं भूख का शिकार हैं।)
English Translation:
With the hard work of those two (the farmer and his wife) the fields are filled with crops. The land that was dry and full of thorns becomes fertile and full of greenry. They provide vegetables, grains, milk fruits to everybody but they themselves remain afflicted with hunger and thirst. These two are strange care-takers. (It is a paradox that those who alleviate the pangs of hunger of other people are themselves victims of hunger.)