Class 7 Sanskrit Chapter 12 विद्याधनम् Summary Notes

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Class 7 Sanskrit Chapter 12 विद्याधनम् Summary Notes

विद्याधनम् पाठ का परिचय

पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson) प्रस्तुत पाठ में श्लोकों के द्वारा विद्या के महत्त्व को बताया गया है। विद्या मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धन है। विद्यावान् व्यक्ति का सर्वत्र सम्मान होता है, विद्या मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है। विद्या कल्पतरु के समान मनुष्य के सभी कार्य पूर्ण करती है। विद्याहीन मनुष्य पशु के समान होता है। अतः मनुष्य को श्रेष्ठ प्राणी बनने के लिए विद्या रूपी धन को संचित करना चाहिए।

विद्याधनम् Summary

विद्या कल्पलता की तरह होती है। इस पाठ में विद्या का महत्त्व बताया गया है। यथा विद्या को चोर चुरा नहीं सकता, राजा छीन नहीं सकता और भाई बाँट नहीं सकता। विद्या सभी धनों में श्रेष्ठ है। इसे व्यय किए जाने पर यह बढ़ती है। विद्या मनुष्य का सौन्दर्य है। यह गुप्त से गुप्त धन है। यह अनेक भोगों को देने वाली है तथा सुख प्रदान करने वाली है। राजाओं में ज्ञान की पूजा होती है तथा धन की नहीं।

मनुष्य की शोभा न तो हार से बढ़ती है और न ही पुष्प अथवा अङ्गराग के द्वारा बढ़ती है। मनुष्य की शोभा ज्ञान से बढ़ती विद्या माता की तरह रक्षा करती है, पिता की तरह हित का साधन करती है। यह शोभा को बढ़ाती है। विद्या मनुष्य का सभी प्रकार से भला करती है।

विद्याधनम् Word Meanings Translation in Hindi

(क) न चौरहार्यं न च राजहार्य
न भ्रातभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥1॥

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
चौरहार्यम्-चोरों के द्वारा चुराने योग्य (can be stolen by thieves), राजहार्यम्-राजा के द्वारा छीनने योग्य (can be snatched by king), भ्रातृभाज्यम्-भाइयों के द्वारा बाँटने योग्य (can be divided by brothers), भारकारि-भार (बोझ) बढ़ाने वाली [(that) which increases weight], वर्धते-बढ़ता है (increases), नित्यं-हमेशा (always), प्रधानम् प्रमुख (सर्वोत्तम) (best).

सरलार्थ :
न चोरों के द्वारा चुराने योग्य है और न राजा के द्वारा छीनने योग्य है, न भाइयों के द्वारा बाँटने योग्य है और न भार (बोझ) बढ़ाने वाला है। हमेशा खर्च करने पर बढ़ता ही है। विद्या का धन सभी धनों में प्रमुख (सर्वोत्तम) है।

English Translation :
Neither can it be stolen by thieves nor can it be snatched by the king, nor can it be divided by brothers and nor does it weight. It always grows on spending (using). The wealth of knowledge is the best of all the wealth.

(ख) विद्या नाम नरस्य रूपमधिकं प्रच्छन्नगुप्तं धनम्
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी विद्या गुरूणां गुरुः।
विद्या बन्धुजनो विदेशगमने विद्या परा देवता
विद्या राजसु पूज्यते न हि धनं विद्या-विहीनः पशुः ॥2॥

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
प्रच्छन्नगुप्तम्-अत्यन्त गुप्त (hidden), भोगकरी-भोग का साधन उपलब्ध कराने वाली [(it) helps provide the means of pleasure], परा-सबसे बड़ी (greatest), गुरूणां-गुरुओं का (of teachers), राजसु-राजाओं में (among kings), विद्या-विहीनः-विद्या से रहित (without knowledge).

सरलार्थ :
विद्या मनुष्य का अधिक (अच्छा) स्वरूप है, छुपा हुआ गोपनीय धन है, विद्या भोग का साधन उपलब्ध कराने वाली है, कीर्ति और सुख प्रदान कराने वाली है, विद्या गुरुओं का गुरु है। विद्या विदेश जाने पर बन्धु (मित्र) के समान होती है, विद्या सबसे बड़ा देवता है। विद्या राजाओं में पूजी जाती है, धन नहीं। विद्या से रहित (मनुष्य) पशु के समान होता है।

English Translation :
Knowledge is a person’s best identity, (it) is the hidden wealth, (it) helps provide the means of pleasure, (it) provides fame and comfort/ happiness, knowledge is the teacher of teachers. On going to foreign country knowl edge is like a friend. Knowledge is the greatest god/divinity. Knowledge is worshipped among kings, not wealth. A person without knowledge is like an animal.

(ग) केयूराः न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कता मूर्धजाः।
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते
क्षीयन्तेऽखिलभूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम् ॥3॥

शब्दार्थाः (Word Meanings):
केयूरा:-बाजूबन्द (Bracelets), चन्द्रोज्ज्वला (चन्द्र+उज्ज्वला) चन्द्रमा के समान चमकदार (bright as the moon), विलेपनम्-शरीर पर लेप करने योग्य सुगन्धित-द्रव्य (चन्दन, केसर आदि) (scented material for anointing the body (hair) like sandal, saffron etc.), मूर्धजा:-बाल/वेणी/चोटी (plait), नालङ्कृता (न + अलङ्कृता)-नहीं सजाया हुआ (not decorated), वाण्येका (वाणी+एका)-एकमात्र वाणी (only speech), समलङ्करोति ( सम्+अलङ्करोति) अच्छी तरह सुशोभित करती है (adorns well), संस्कृता-परिष्कृत (संस्कारयुक्त) (Refined), धार्यते धारण की जाती है (is learnt), क्षीयन्तेऽखिलभूषणानि (क्षीयन्ते अखिलभूषणानि)-सम्पूर्ण आभूषण नष्ट हो जाते हैं (all ornaments decay), वाग्भूषणम्-वाणी का आभूषण (ornament of speech).

सरलार्थ :
मनुष्य को न बाजूबन्द सुशोभित करते हैं, न चन्द्रमा के समान चमकदार हार, न स्नान, न शरीर पर सुगन्धित लेपन (चन्दन, केसर आदि), न बालों/चोटी में सजाए हुए फूल सुशोभित करते हैं और ना हीं सजाई गई चोटी ही। मनुष्य को एकमात्र वाणी, भली प्रकार सुशोभित करती है, जो परिष्कृत (संस्कारयुक्त) रूप में धारण की जाती है (व्यवहार में लाई जाती है)। अन्य सभी आभूषण नष्ट होते हैं, (परन्तु) वाणी का आभूषण सदैव रहने वाला आभूषण है।

English Translation :
Neither bracelet nor bright as moon necklaces, nor bath, nor scented anointing on the body (sandal, saffron etc.), nor flowers decorating the hair plait adorn a person. Only speech which is learnt refined, adorns a person well. All other ornaments are destroyed, the ornament of speech is an everlasting ornament.

(घ) विद्या नाम नरस्य कीर्तिरतुला भाग्यक्षये चाश्रयः
धेनुः कामदुधा रतिश्च विरहे नेत्रं तृतीयं च सा।
सत्कारायतनं कुलस्य महिमा रत्नैर्विना भूषणम्
तस्मादन्यमुपेक्ष्य सर्वविषयं विद्याधिकारं कुरु॥4॥

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
कीर्तिरतुला (कीर्तिः + अतुला)-अतुल्य यश (incredible fame), कामदुधा-इच्छाओं की पूर्ति करने वाली (one that fulfils all aspiration/desires), रतिश्च (रतिः + च)-और प्रेम (love). सत्कारायतनम (सत्कार + आयतनम)-सम्मान का स्थान अर्थात् सम्मान प्रदान करने वाली (dwelling place of fame/giver of fame), रत्नौविना (रलैः+विना) (मूल्यवान.) रत्नों के बिना (without jewels), विद्याधिकारम्-(विद्या + अधिकारम्) विद्या पर प्रभुत्व (mastery over learning).

सरलार्थ :
विद्या वास्तव में (नाम) मनुष्य की अतुल्य कीर्ति है, भाग्यक्षय (बदकिस्मती) होने पर एक आश्रय/सहारा है। कामनापूर्ति करने वाली गाय अर्थात् कामधेनु है। विरह में प्रेम करती है और वही मनुष्य की तीसरी आँख होती है। सम्मान का स्थान है। कुल की महिमा है, (बहुमूल्य) रत्नों के बिना भी आभूषण है। अतः अन्य सब बातों को छोड़ विद्या पर अपना प्रभुत्व कर लो। .

English Translation :
Learning is indeed man’s incredible fame (ie learning bring unparalleled fame) It is a support in times of adverse circumstances. It is a cow that fulfils all desires, (satisfying) love in times of separation; it is the third eye (that can perceive everything beyond normal vision). It is the giver of honour/fame. It is the prestige of family. It is an adornment without any jewels. Hence, ignoring everything gains mastery over learning.

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