Essay On Holi In Hindi

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होली पर निबंध

होली – होली पर निबंध बच्चों के लिए – होली का त्योहार निबंध – Essay On Holi In Hindi – Holi Festival Essay In Hindi – Holi Ka Tyohar Nibandh In Hindi – Holi Essay In Hindi

रुपरेखा : आनंद, उल्लास का पर्व – होली 2021 – मदनोत्सव के रूप में वर्णन – समाज में प्रचलित कथाएँ – होलिका दहन और होली मिलन – आधुनिक युग में प्रदर्शन मात्र – उपसंहार।

आनंद, उल्लास का पर्व –

भारतीय पर्व परम्परा में होली आनन्दोल्लास का सर्वश्रेष्ठ रसोत्सव है। मुक्त, स्वच्छन्द परिहास का त्यौहार है । नाचने- गाने, हँसी-ठिठोली और मौज-मस्ती की त्रिवेणी है। सुप्त मन की गुफाएं में पड़े ईर्ष्या-द्वेष जैसे निकृष्ट विचारों को निकाल फेंकने का सूंदर अवसर माना जाता है। होली वसंत ऋतु का यौवनकाल है। ग्रीष्म के आगमन की सूचक है। वनश्री के साथ-साथ खेतों की श्री एवं हमारे तन-मन की श्री भी फाल्गुन के ढलते-ढलते सम्पूर्ण आभा में खिल उठती है। इसीलिए होली पर्व को आनंद, उल्लास का पर्व कहा जाता है।

 

होली कब है –

वर्ष 2021 में होली का त्यौहार 29 मार्च, सोमवार के दिन खूब रंगो के साथ मनाई जाएगी।

 

मदनोत्सव के रूप में वर्णन –

दशकुमार चरित में होली का उल्लेख ‘मदनोत्सव’ के नाम से किया गया है। वैसे
भी, वसंत काम का सहचर है। इसलिए कामदेव के विशेष पूजन का विधान है। कहीं
फाल्गुन शुक्ल द्वादशी से पूर्णिमा तक, कहीं चैत्र शुक्ल द्वादशी से पूर्णिमा तक मदनोत्सव का विधान है। आमोद-प्रमोद और उल्लास के अवसर पर मन की अमराई में मंजरित इस सुख सौरभ का अपना स्थान है। व्यापनशील विष्णु और शोभा-सौंदर्य की अधिष्ठात्री लक्ष्मी के पुत्र हैं । इसका तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर दो चेतनाएँ होती हैं, एक आत्मविस्तार की और दूसरी अपनी ओर खींचने की। दोनों का सामंजस्य होता है तो काम जन्म लेता है। एक निराकार उत्सुकता जन्म लेती है।
वह उत्सुकता यदि बिना किसी तप के आकार लेती है तो अभिशप्त होती है और अपने को छार करके आकार ग्रहण करे तो भिन्न होती है।

 

समाज में प्रचलित कथाएँ –

होली के साथ अनेक दंत-कथाओं का संबंध जुड़ा हुआ है। पहली कथा है प्रहलाद और होलिका की | प्रहलाद के पिता हरिण्यकशिपु नास्तिक थे और वे नहीं चाहते थे कि उनके राज्य में कोई ईश्वर की पूजा ना करे, किन्तु स्वयं उनका पुत्र प्रहलाद ईश्वर भक्त था। अनेक कष्ट सहने के बाद भी जब उसने ईश्वर भक्ति नहीं छोड़ी, तब उसके पिता ने अपनी बहन होलिका को प्रहलाद के साथ आग में बैठने को कहा। होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। अग्नि ज्वाला में होलिका प्रहलाद को लेकर बैठी। परंतु परिणाम उल्टा निकला। होलिका आग में जल गई और प्रहलाद सुरक्षित बाहर आ गए।
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार ठुण्डा नामक राक्षसी बच्चों को पीड़ा पहुँचाती तथा
उनकी मृत्यु का कारण बनती थी। एक बार वह राक्षसी पकड़ी गई। लोगों ने क्रोध में उसे जीवित जला दिया। इसी घटना की स्मृति में होली के दिन आग जलाई जाती है।
भारत कृषि प्रधान देश है। होली के अवसर पर पकी हुई फसल काटी जाती है । खेत
की लक्ष्मी जब घर के आँगन में आती है तो किसान अपने सुनहले सपने को साकार पाता है । वह आत्म-विभोर हो नाचता है, गाता है।

 

होलिका दहन और होली मिलन –

फाल्गुन पूर्णिमा होलिका दहन का दिन है। लोग घरों से लकड़ियाँ इकट्ठी करते हैं।
अपने-अपने मुहल्ले में अलग-अलग होली जलाते हैं । होली जलाने से पूर्व स्त्रियाँ लकड़ी के ढेर को उपलों का हार पहनाती हैं, उसकी पूजा करती हैं और रात्रि को उसे अग्नि की भेंट कर देते हैं। लोग होली के चारों ओर खूब नाचते और गाते हैं तथा होलो की आग में नई फसल के अनाज की बाल को भून कर खाते हैं। होली से अगला दिन धुलेंडी का है। फाल्गुन की पूर्णिमा के चन्द्रमा की ज्योत्स्ता, वसंत को मुस्कराहट, परागी फगुनाहट, फगुहराओं की मौज-मस्ती, हँसी-ठिठोली, मौसम की दुंदभी बजाती धुलेंडी आती है। रंग भरी होली जीवन की रंगीनी प्रकट करती है। मुँह पर अबीर-गुलाल, चन्दन या रंग लगाते हुए गले मिलने में जो मजा आता है, मुँह को काला-
पीला रंगने में जो उल्लास होता है, रंग भरी बाल्टी एक दूसरे पर फेंकने में जो उमंग होती है, निशाना साधकर पानी- भरा गुब्बारा मारने में जो शरारत की जाती है, वे सब जीवन की सजीवता प्रकट करते हैं।

 

आधुनिक युग में प्रदर्शन मात्र –

आज होली उत्सव में शील और सौहारद्द्र संस्कारों की विस्मृति से मानव आचरण में
चिंतनीय विकृतियों का समावेश हो गया है। गंदे और अमिट रासायनिक लेपों, गाली-
गलौज, अश्लील गान और आवाज-कसी एवं छेड़छाड़ ने होली की धवल-फाल्गुनी,
पूर्णिमा पर ग्रहण की गर्हित छाया छोड़ दी है, जिसने पर्व की पवित्रता और सत् संदेश की अनुभूति को तिरोहित कर दिया है। आज होली परम्परा-निर्वाह की विवशता का प्रदर्शन-मात्र रह गया है। कहीं होली की उमंग तो दीखती नहीं, शालीनता की नकाब चढ़ी रहती है। उल्लास दुमका रहता है। नशे से उल्लास की जाग्रति का प्रयास किया जाता है। आज का मानव अर्थ चक्र में दबा हुआ उससे त्रस्त है। भागते समय को वह समय की कमी के कारण पकड़ नहीं पाता। इसलिए आनंद, हर्ष, उल्लास, विनोद, उसके लिए दूज का चन्द्रमा बन गये हैं। इस दम घोटू वातावरण में होली-पर्व चुनौती है। इस चुनौती को स्वीकार करें। मंगलमय रूप में हास्य, व्यंग्य-विनोद का अभिषेक करें।

 

उपसंहार –

बच्चों का सबसे पसंदिता त्योहार है होली। चहुँ ओर अबीर-गुलाल, रंग भरी पिचकारी और गुब्बारों से बच्चों तथा बड़ों मग्न हो जाते है। छोटे-बड़े, नर-नारी, सभी होली के रंग में रंगे रहते है । डफ-ढोल, मृदंग के साथ नाचती-गांती, हास्य-रस की फुब्वारें छोड़ती, परस्पर गले मिलती, वीर बैन उच्चारती, आवाजें कसती, छेड़छाड़ करती टोलियाँ दोपहर तक होली के प्रेमानन्द में डूबी रहती हैं। सचमुच होली भारत का सबसे रंगीन त्योहार है।

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