शरद ऋतु पर निबंध
शरद ऋतु – Essay on Winter Season In Hindi
रुपरेखा : शरद का परिचय – शरद ऋतु का आगमन – कवि द्वारा वर्णन – आयुर्वेद के दृष्टि से महत्त्व – भारतीय पर्वो की दृष्टि से महत्त्व – वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व – उपसंहार।
शरद का परिचय
भारत में शरद वसंत के ही समान सुहावनी ऋतु है। शरद ऋतु आने पर आकाश निर्मल और निरभ्र हो जाता है। रात्रि में सुधाकर अपनी किरणों से अमृत की वर्षा करने लगता है । मन्द-मन्द शीतल पवन चलने लगी। वर्षा की बौछारों से, कौट-पतंगों की भरमार से तथा वर्षा-व्याधियों से प्राणियों को छुटकारा मिला। उनका हृदय शरत्-स्वागत के लिए तत्पर हो उठा। भारतीय ऋतु-परम्परा की दृष्टि से आश्विन और कार्तिक शरत ऋतु के मास हैं । शरद ऋतु के आगमन तक वर्षा की मेघ-मालाएँ लुप्त हो गईं। दुर्गनध और कीचड़ का अन्त हो गया। वातावरण की घुमस और घुटन समाप्त हो गई । स्वच्छ और निर्मल आकाश मंडल चमकने लगा। चाँदनी का रूप निखर गया । नदो-तट पर काँस विकसित हो गए सर्वत्र स्वच्छता और शान्ति का साम्राज्य छा गया।
शरद ऋतु का आगमन
शरद ऋतु के आगमन के सूचक लक्षणों का वर्णन करते हुए महान कवि लिखते हैं, ‘नदी के तट पर कांस का विकास, निर्मल जल पृरित नदियों का मन्द प्रवाह, कुछ शीत वायु, छिटकी हुई चंद्रिका, हरित वृक्ष, उच्च प्रासाद, नदी, पर्वत, कटे हुए खेत तथा मातृ धरणी पर रजत मार्जित आभास होता है’। शरद ऋतु में शस्य श्यामला धरिणी कृषि गंध से परिपूर्ण होती है। निरुक्त की परिभाषा से इस ऋतु में प्रकृति उन्मुक्त भाव से अन्नपूर्णा बनकर जल को स्त्रच्छ और निर्मला करती है। शरद में जन्मा व्यक्ति सुकर्मा, तेजस्वी, पवित्र विचागें वाला मुश॑ल, गुणवान धनी होता है।
कवि द्वारा वर्णन
तुलसीदास जी रामचरिगमानस में शरद की प्राक़तिकर छटा का उपसायुक्त वर्णन किया है। अगस्त्य नक्षत्र ने उदित होकर मार्ग के जल को सोख लिया जैसे संतोष लोभ को सोख लेता है। नदियों आर तालाबों का निर्मल जल ऐसी शोभा पा रहा है, जैसे मद और माह से रहित संतों का हृदय। नदी ओर तालाबों का जल धीरे-धींर सूख रहा है, जैसे ज्ञानी पुरुष ममता का त्याग कर देते हैं | मेघ रहित निर्मल आकाश ऐसा सुशोभित हो रहा है, जैसे भगवान् का भक्त सब आशाओं को छोड़कर सुशोभित होता है। हृदय प्रकृति-नटो के साथ प्रसन्न हो उठा । नर-नारी, युवा-यूवती, बाल-वृद्ध सबके चेहरों पर रौनक आई और काम में मन लगा। उत्साह का सचार हुआ और प्रेरणा उदित हुई।
आयुर्वेद के दृष्टि से महत्त्व
आयुर्वेद की दृष्टि से शरद में पित्त का संचय और हेमन्त में पकोप होता है। अतः पित्त के उपद्रव से बचने के लिए शरत्काल में पित्तकारक पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए। दूसरे, शरत्काल में ही गरिष्ठ और पौष्टिक भोजन का आनन्द है। जो खाया, सो पच गया और रक्त बन गया। स्वास्थ्यवर्धन की दृष्टि से यह सर्वोत्तम काल है।
भारतीय पर्वो की दृष्टि से महत्त्व
भारतीय (हिन्दू) पर्वों की दृष्टि से शरत्काल विशेष महत्त्वपूर्ण है। शारदीय नवरात्र अर्थात् आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर कार्तिक की पूर्णिमा तक ये पर्व आते हैं। सम्पूर्ण धरा शुभ्र चाँदनी में स्नात हो जाती है | नवरात्र आए और विधि-विधान से दुर्गा-पूजा की गई। नवरात्र संयमित जीवन का सन्देश दे गए। तप्तपछात दशहरा आया शस्त्रपूजन का दिन, मर्यादापालन का सूचक पर्व, आसुरी वृत्ति पर देवत्व की विजय का प्रतीक। शारदी-पूर्णिमा पर चन्द्रमा की किरणें सुधारस बरसाती हैं। महापर्व दीपावली कार्तिक की अमावस्या को होता है। यह लक्ष्मीपूजन का भी त्यौहार है। भगवती लक्ष्मी चेतावनी दे गई, जिसकी स्वामिनी बनती हूँ उसको उलूक बनाती हूँ, जिसकी सखी बनती हूँ, वह कुबेर बन जाता है, जिसकी दासी बनती हूँ, वह स्वयं श्री लक्ष्मी-निवास अर्थात् भगवान् बन जाता है।
वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्व
वैज्ञानिक दृष्टि से शरद का बहुत महत्त्व है | वर्षा के बाद घर की सफाई लिपाई-पुताई की परम्परा है। वर्ष-भर के कूडे-करकंट को निकाला जाता है घर को दीवारों को रंग-रोगन से अलंकृत किया जाता है। दुकानों और व्यापारिक संस्थानों कौ सफाई का विधान है। गंदगी रोग का घर है। साफ-सुथरा घर स्वास्थ्यवर्धन का आधारभूत सिद्धान्त है। शरद ऋतु-क्रम का स्वर्णिम काल। इसमें वम्त्रपरिधान का आनन्द है, विभिन्न पदार्थों के खाने-पीने और पचाने की शक्ति है, कार्य करने का उल्लास है। चेहरों पर उमंग है और है जीवन जीने के लिए प्रेरणा और स्फूर्ति है।
उपसंहार
इसीलिए भारत में शरद वसंत के ही समान सुहावनी ऋतु है। भारतीय पूर्वो में भी शरद ऋतु का बड़ा महत्त्व है। भारत देश में कई त्यौहार होते है और सभी त्यौहार मिलजुल कर मनाया जाता है। शरद ऋतू आगमन करने के लिए सभी नर-नारी, पशु-पक्षी बड़े ही उत्साहित नजर आते हैं।