खातों (Ledger) के प्रकार क्या है और उसके शेष निकालने की विधि क्या है ?
व्यक्तिगत खाता/दायित्व एवं पूँजी खाता के शेष निकालने की विधि :
इन खातों के रखने का उद्देश्य यह है कि हम यह जान सकें कि किससे कितना रुपया लेना है और किसे कितना रुपया देना है। अतः इस प्रकार के खाते के डेबिट पक्ष की राशि का जोड़ बड़ा रहने पर खाते के क्रेडिट पक्ष में By Balance c/d लिखकर अंतर की राशि लिख देते हैं। फिर दोनों पक्षों का जोड़ लिख दिया जाता है।
इससे खाता बंद हो जाता है। इसके बाद डेबिट पक्ष की ओर जोड़ वाली पंक्ति के बाद अगली पंक्ति में To Balance b/d लिखकर वही अंतर वाली राशि लिख देते हैं। तारीख वाले खाने में जिस तारीख को खाते बंद किए गए हैं, उसकी अगली तारीख लिखी जाती है।
इसके विपरीत, यदि खाते का क्रेडिट शेष हो तो खाते के डेबिट पक्ष में To Balance c/d लिखते हैं और राशि वाले खाने में अंतर की राशि लिखी जाती है। फिर दोनों पक्षों का योग कर लिया जाता है। जोड़ की क्रिया के बाद अगली पंक्ति में खाते के क्रेडिट पक्ष में By Balance b/d लिखा जाता है और राशि वाले खाने में अंतर वाली राशि ही लिखी जाती है।
वास्तविक खाता या सम्पत्ति खाता के शेष निकालने की विधि :
वास्तविक खातों के रखने का उद्देश्य किसी विशेष सम्पत्ति का अपने पास शेष ज्ञात करना है। अतः ये खाते व्यक्तिगत खातों की तरह ही बंद किए जाते हैं।
रोकड़ खाता, मशीन खाता, फर्नीचर खाता, भवन खाता इस तरह के खातों के उदाहरण हैं। ध्यान रहे कि सम्पत्ति या वास्तविक खातों का शेष हमेशा नाम शेष (Debit Balance) होता है।
अवास्तविक खाते या आगम एवं व्यय खाते के शेष निकालने की विधि :
अवास्तविक खाते आय-व्यय से संबंधित होते हैं। इन खातों के रखने का उद्देश्य भिन्न मदों से होने वाली आय और व्यय की राशियों ज्ञात कर व्यापार का लाभ-हानि ज्ञात करना होता है।
अतः इन खातों के शेषों को लाभ-हानि खातों में हस्तांतरित करने के लिए जो प्रविष्टियाँ की जाती हैं उन्हें अंतिम प्रविष्टियाँ कहा जाता है।
खर्चा से संबंधित खातों का शेष नाम शेष (Debit Balance) तथा आय से संबंधित खातों का शेष जमा शेष (Credit Balance) हुआ करता है।