Essay Writing on an hour on the playground in hindi

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खेल के मैदान पर एक घंटा पर निबंध

खेल के मैदान पर एक घंटा पर हिंदी निबंध कक्षा 5, 6, 7, 8, और 9 के विद्यार्थियों के लिए। – Essay Writing on an hour on the playground in hindi – One Hour on the Playground Essay in hindi for class 5, 6, 7, 8 and 9 Students. Essay on spending one hour on playground in Hindi for Class 5, 6, 7, 8 and 9 Students and Teachers.

रूपरेखा : प्रस्तावना – खेल के मैदान पर जाने का प्रसंग – क्रिकेट और फुटबॉल के खेल – कबड्डी का मैच – छोटे बच्चों की चहल-पहल – अखाड़े का रंग – क्रीडांगण के बाहर का वातावरण – उपसंहार।

खेल का मैदान या क्रीडांगण एक ऐसा आनंद-स्थल है, जहाँ बच्चों और किशोरों की चहल-पहल देखते ही बनती है। अभी तक मैं केवल सिनेमा हॉल और नाट्यशाला को ही मनोरंजन के स्थान मानता था, किंतु उस दिन शाम के समय जब मैं अपने मित्र के साथ खेल के मैदान पर पहुँचा तो सचमुच मुझे लगा कि आनंद की असली जगह तो यही है।

खेल का मैदान बहुत विशाल और समतल था। हरी घास और खुली जगह होने के कारण वहाँ का वातावरण सुहाना लग रहा था। मैदान के एक हिस्से में कई खिलाड़ी क्रिकेट खेल रहे थे। उनका खेल देखने के लिए काफी भीड़ लगी हुई थी। चौका या छक्का लगने पर लोग मारे खुशी के तालियाँ बजाते थे। दूसरी ओर फुटबॉल के खिलाड़ियों ने रंग जमाया था। उनकी उछल-कूद और मस्ती देखने लायक थी।

खेल के मैदान के एक हिस्से में कबड्डी का मैच चल रहा था। जब कभी कोई खिलाड़ी ‘आउट’ हो जाता तो दर्शक मारे खुशी के उछल पड़ते थे। एक बार तो ‘आउट’ होने के बारे में मतभेद होने से बात बढ़ गई। ऐसा लगा कि कुछ ही क्षणों में खेल का मैदान युद्ध का मैदान बन जाएगा ! पर फिर रेफरी के आदेश पर सभी खिलाड़ी फिर से मिल-जुलकर खेलने लग गए।

खेल के मैदान का एक हिस्सा छोटे बच्चों के लिए सुरक्षित था। कहीं झूले की बहार थी, तो कहीं सरकपट्टी का मजा। सीढ़ी पर चढ़कर बच्चे पत्थर के हाथी पर बैठकर फूले नहीं समाते थे। कुछ बच्चे टोलियाँ बनाकर तरह-तरह के खेल खेल रहे थे। यहाँ की चहल-पहल दर्शनीय थी।

खेल के मैदान में सबसे अलग एक कोने में अखाड़ा था, जहाँ कुश्ती के पहलवान आपस में भिड़ रहे थे। इन पहलवानों के दाँव-पेंच देखने योग्य थे। कुछ पहलवान दंड-बैठक लगा रहे थे। अखाड़े के बीच में मलखम का एक ऊँचा खंभा था। कुछ किशोर उस पर कसरत करने की धुन में मस्त थे। खेल के मैदान के बाहर खानेवाले और खिलौनेवालों की भीड़ थी। लोग चाव से भेल-पूरी, आइसक्रीम आदि का मजा ले रहे थे। कुछ लोग बच्चों के लिए खिलौने खरीद रहे थे।

धीरे-धीरे अँधेरा बढ़ने लगा। खिलाड़ियों ने खेलना बंद कर दिया। लोग भी बिदा होने लगे। सबके चेहरों पर खुशी और ताजगी झलक रही थी। खेल के विभिन्न दृश्यों ने मुझे उत्साह से भर दिया। ‘जीवन भी एक खेल ही है – ऐसा मेरा मानना है। मुझे पता भी न चला कि खेल के मैदान में एक घंटा कैसे बीत गया।

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